महाभाग सोमशर्मा ने
इस प्रकार विचार करके ज्यों ही उस घड़े की देखा,त्यों ही वह अमृत से भर गया! घड़े को
भरा देख उसे हाथ में ले महायशस्वी सोमशर्मा तुरंत ही पिता के पास गए और उन्हें
प्रणाम करके बोले--पिताजी ! लीजिये,यह अमृत से भरा घड़ा आ गया ! इसे पीकर शीघ्र ही रोग से मुक्त हो जाइये !'पुत्र का यह परम पुन्यमय तथा सत्य और धर्म से युक्त मधुर वचन सुनकर शिवशर्मा को बड़ा हर्ष हुआ !वे बोले -‘पुत्र! आज मैं तुम्हारी तपस्या,इन्द्रियसंयम, शौच,गुरुशुश्रुषा
तथा भक्तिभाव से विशेष संतुष्ट हूँ! लो, अब मैं इस विकृत रूप का त्याग करता हूँ !’
यों कहकर ब्राह्मण
शिवशर्मा ने पुत्र को अपने पहले रूप में दर्शन दिया ! सोमशर्मा ने माता पिता को
पहले जिस रूप में देखा था,उसी रूप में उस समय भी देखा !वे दोनों महात्मा सूर्यमंडल
की भांति तेज से दीप्त हो रहे थे ! सोमशर्मा ने बड़ी भक्ति के साथ उन महात्माओं के
चरणों में मस्तक झुकाया ! तदन्तर वे दोनों पति पत्नी पुत्र से बातचीत करके अत्यंत
प्रसन्न हुए ! फिर धर्मात्मा ब्राह्मण भगवन श्री विष्णु की कृपा से अपनी पत्नी को
साथ ले विष्णुधाम को चले गए ! अपने पुण्य और योगाभ्यास के प्रभाव से उन मह्रिषी ने
दुर्लभ पद प्राप्त कर लिया !