Friday, 25 January 2013

सोमशर्मा की पितृभक्ति भाग २


सोमशर्मा अपने दोनों माता पिता को कंधे पर बैठा कर तीर्थों में लेकर जाया करते थे! वे वेदों के ज्ञाता थे अतः मांगलिक मन्त्रों का उच्चारंपूर्वक दोनों को नहलाते और स्वयं भी स्नान करते थे! फिर पितरों का तर्पण और देवताओं का पूजन भी वे उन दोनों से प्रतिदिन कराया करते थे! स्वयं अग्नि में होम करते और अपने सभी कार्य अपने माता पिता को बताया करते थे!सोमशर्मा  प्रतिदिन उन दोनों को शय्या पर सुलाते और उन्हें पत्र पुष्प आदि सब सामग्री निवेदन करते थे! परम सुगन्धित पान लगाकर माता पिता को अर्पण करते तथा नित्य प्रति उनकी  इच्छानुसार फल मूल,दूध आदि उत्तमोत्तम भोज्य पदार्थ खाने को देते थे! इस क्रम से वे सदा ही माता पिता को प्रसन्न रखने की चेष्टा करते थे! पिता सोमशर्मा को बुलाकर उन्हें नाना प्रकार के कठोर एवं दुखदायी वचनों से पीड़ित करते और उन्हें डंडों से पीटते भी थे!यह सब करने पर भी धरमात्मा सोमशर्मा कभी पिता के ऊपर क्रोध नहीं करते थे! वे सदा संतुष्ट रहकर मन,वाणी और क्रिया—तीनो के ही द्वारा पिता की पूजा करते थे!

ये सब बातें जानकार शिव्शार्मा अपने चरित्र पर विचार करने लगे! उन्होने सोचा---“सोमशर्मा का मेरी सेवा में अधिक अनुराग दिखाई देता है,इसीलिए समय पर मैंने इसके तप की परीक्षा की है;किन्तु मेरा पुत्र भक्ति भाव तथा सत्यपूर्ण बर्ताव से ब्रष्ट नहीं हो रहा है!निंदा करने और मारने पर भी सदा मीठे वचन ही बोलता है!इस प्रकार मेरा बुद्धिमान पुत्र दुष्कर सदाचार का पालन कर रहा है!अतः अब मैं भगवान् विष्णु के प्रसाद से इसके दुःख दूर करूंगा!’इस प्रकार बहुत देर तक सोच विचार करने के बाद परम बुद्धिमान शिव्शार्मा ने पुनः माया का प्रयोग किया!अमृत के घड़े से अमृत का अपहरण कर लिया उसके बाद सोमशर्मा को बुला कर कहा----‘पुत्र! मैंने तुम्हारे हाथ में रोगनाशक अमृत सोंपा था,उसे शीघ्र लाकर मुझे अर्पण करो,जिससे मैं इस समय उसका पान कर सकूं!’ 
पिता के यों कहने पर सोमशर्मा तुरंत उठ कर चल दिए! अमृत के घड़े के पास जाकर उन्होंने देखा की वह खाली पड़ा है----उसमे अमृत के एक बूँद भी नहीं है! यह देख कर परम सौभाग्यशाली सोमशर्मा ने मन ही मन कहा----‘यदि मुझ में सत्य और गुरु-सुश्रुषा है,यदि मैंने पूर्वकाल में निच्छल ह्रदय से तपस्या की है,इन्द्रिय संयम,सत्य और शौच आदि धर्मों का ही सदा पालन किया है तो यह घड़ा निश्चय ही अमृत से भर जाये!’

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