एक बार एक गौतम नामक ब्राहमण था जिसने ऊँचे कुल और गौत्र में जन्म लिया था तथा वह वेदपाठी एवं श्रोत्रिय भी था!किन्तु वह अधिक धनि नहीं था!एक बार वह अपने घर से किसी कार्यवश सड़क से पैदल कहीं जा रहा था अकस्मात,मार्ग में उसके पास से एक धनि वैश्य अपने कीमती रथ पर सवार हो कर निकला!गौतम सड़क के मध्य में उसके रथ से आगे था!वैश्य ने अपने वाहन को रोककर ब्रह्मण को सड़क के सहारे होने का समय ही नहीं दिया!वह अपने धन,बल और रूप के मद से उन्मत्त हो रहा था उसने शीघ्रता से घोड़ो के द्वारा गौतम को चौट पहुंचाते हुए रथ आगे बढ़ा लिया!इस प्रकार वह बनिया ब्रह्मण की और अवहेलना पूर्वक देख कर हँसते और धुल उड़ाते हुवे अपने रास्ते चला गया!गौतम अपने तिरस्कार से बड़ा दुखी हुवा और सोचने लगा कि इस दुनिया में तो केवल धनि को ही जीने का अधिकार है निर्धन को नहीं!ऐसा जीवन जीने से तो मर जाना ही भला है!
अभी वह ऐसा सोच ही रहा था कि भगवन इन्द्र वहां एक गीदड़ के रूप में आये और उसके साथ साथ चलने लगे! गौतम पशुओं कि भाषा को जनता था!गीदड़ के द्वारा गौतम से उसकी निराशा का कारण पूछने पर उसने सारी घट्ना बता दी१तब गीदड़ ने कहा देखो,तुम मुझसे कहीं बहुत अधिक अच्छी अवस्था में हो! मेरे तो सारे शरीर में मक्खी,मच्छर और डांस काट काट कर मुझे पीड़ा देते रहते हैं!मैं उनसे अपने शरीर कि रक्षा भी नहीं कर सकता!मैं तो केवल दो हाथों के लिए ही भटकता हूँ!तुम्हारे पास तो दो हाथ हैं!मैं सर्दी गर्मी से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता किन्तु तुम्हे सब सुविधाएँ प्राप्त हैं!रोने पर मेरे आंसू तो सबको दीखते हैं किन्तु यदि मैं खुश होऊं तो मेरा हँसता चेहरा किसी को नहीं दीख सकता!और साथ ही जंगली जीव होने के कारण मुझे शेर चीतों के द्वारा खाए जाने का भी भय अलग लगा रहता है तब भी मैं तुम्हारी तरह आत्महत्या करने के विषय में तो कभी नहीं सोचता!
गौतम ने उसकी सांत्वना पूर्ण बाते सुनकर स्वयं को कुछ संभाला और उससे पूछा कि हे जीव,तुम कौन हो जो इस प्रकार विद्वानों कि तरह वार्तालाप करते हो! अपना परिचय दो!गीदड़ ने कहा मैं पिछले जन्म में एक ऊँचे कुल का धनि ब्राह्मण था!मैं अपने धन और ज्ञान के अहंकार में चूर हो कर अल्पज्ञानी हो कर भी अपने से अधिक विद्वान ब्राह्मणों से द्वेष रखता था!मैं उन्हें भरी सभाओं में नीचा दिखने का प्रयास और सदैव ही अपमानित करता था जिसके पाप वश मैं नीच योनी प्राप्त हुआ!तदन्तर पशचाताप हो जाने के परिणाम स्वरुप मुझे पिछले जन्म कि स्मृति अभी भी बनी हुई है!मैं अब भी यह चाहता हूँ कि मैं समय पर अपनी निर्धारित मृत्यु को पा कर क्रम से ब्रह्मा जी के रचे हुवे विधान के अनुसार विभिन्न योनियों में भ्रमण करता हुआ फिर से इस उच्च मनुष्य यों में जन्म लूँगा!सत्कर्म,भजन संकीर्तन और संत सेवा से इस दुस्तर संसार सागर से तर जाऊँगा!कभी भी अपने से ऊँचे लोगों से तुलना करके स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए अपने से नीचे प्राणियों को देखकर धैर्य धारण करना चाहिए!गीदड़ कि सब बातें सुनकर गौतम ने अपने मन में आई हुई ग्लानी को दूर किया और फिर से स्वस्थ चित्त हो कर सत्कार्यों में लग गया!
अभी वह ऐसा सोच ही रहा था कि भगवन इन्द्र वहां एक गीदड़ के रूप में आये और उसके साथ साथ चलने लगे! गौतम पशुओं कि भाषा को जनता था!गीदड़ के द्वारा गौतम से उसकी निराशा का कारण पूछने पर उसने सारी घट्ना बता दी१तब गीदड़ ने कहा देखो,तुम मुझसे कहीं बहुत अधिक अच्छी अवस्था में हो! मेरे तो सारे शरीर में मक्खी,मच्छर और डांस काट काट कर मुझे पीड़ा देते रहते हैं!मैं उनसे अपने शरीर कि रक्षा भी नहीं कर सकता!मैं तो केवल दो हाथों के लिए ही भटकता हूँ!तुम्हारे पास तो दो हाथ हैं!मैं सर्दी गर्मी से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता किन्तु तुम्हे सब सुविधाएँ प्राप्त हैं!रोने पर मेरे आंसू तो सबको दीखते हैं किन्तु यदि मैं खुश होऊं तो मेरा हँसता चेहरा किसी को नहीं दीख सकता!और साथ ही जंगली जीव होने के कारण मुझे शेर चीतों के द्वारा खाए जाने का भी भय अलग लगा रहता है तब भी मैं तुम्हारी तरह आत्महत्या करने के विषय में तो कभी नहीं सोचता!
गौतम ने उसकी सांत्वना पूर्ण बाते सुनकर स्वयं को कुछ संभाला और उससे पूछा कि हे जीव,तुम कौन हो जो इस प्रकार विद्वानों कि तरह वार्तालाप करते हो! अपना परिचय दो!गीदड़ ने कहा मैं पिछले जन्म में एक ऊँचे कुल का धनि ब्राह्मण था!मैं अपने धन और ज्ञान के अहंकार में चूर हो कर अल्पज्ञानी हो कर भी अपने से अधिक विद्वान ब्राह्मणों से द्वेष रखता था!मैं उन्हें भरी सभाओं में नीचा दिखने का प्रयास और सदैव ही अपमानित करता था जिसके पाप वश मैं नीच योनी प्राप्त हुआ!तदन्तर पशचाताप हो जाने के परिणाम स्वरुप मुझे पिछले जन्म कि स्मृति अभी भी बनी हुई है!मैं अब भी यह चाहता हूँ कि मैं समय पर अपनी निर्धारित मृत्यु को पा कर क्रम से ब्रह्मा जी के रचे हुवे विधान के अनुसार विभिन्न योनियों में भ्रमण करता हुआ फिर से इस उच्च मनुष्य यों में जन्म लूँगा!सत्कर्म,भजन संकीर्तन और संत सेवा से इस दुस्तर संसार सागर से तर जाऊँगा!कभी भी अपने से ऊँचे लोगों से तुलना करके स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए अपने से नीचे प्राणियों को देखकर धैर्य धारण करना चाहिए!गीदड़ कि सब बातें सुनकर गौतम ने अपने मन में आई हुई ग्लानी को दूर किया और फिर से स्वस्थ चित्त हो कर सत्कार्यों में लग गया!
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