एक बार महात्मा बुद्ध किसी वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे!वृक्ष आम का था!काफी बड़ा और घना!ठंडी ठंडी हवा चल रही थी!बुद्ध ध्यानमग्न थे!तभी एक पत्थर उनके माथे पर आकर लगा!माथे से रक्त की धारा बह निकली!उसी समय वहां पर तीन चार बच्चे आये और इस कृत्य के लिए उनसे माफ़ी मांगते हुवे बोले,"हमें माफ़ कर दीजिये!हमने आम के वृक्ष से फल तोड़ने के लिए पत्थर फेंका था जो भूल से आपको आ लगा!"बच्चों की बात सुनकर महात्मा बुद्ध की आंखे छलछला आयीं!वे विनम्रता से बोले,"बच्चों,मुझे पत्थर लगा,इसका मुझे जरा भी दुःख नहीं!दुःख तो इस बात का है कि पत्थर मारने पर वृक्ष तुम्हें मीठे फल देता है और जब पत्थर मुझे लगा तो तुम लोग भयभीत हो गए!मैं तुम्हे भय के सिवाय कुछ भी न दे सका!"भगवन बुद्ध के इस कथन से बच्चे उनके चरणों में झुक गए!
Thursday, 15 November 2012
Friday, 12 October 2012
Life Is an Examination
Life is an examination, God is the examiner,
The world is an examination hall,
And we are all taking the examination of life,
The time allowed is only three hours
The first hour is childhood,the second is youth&
The third one is old age
The bell of the last hour is rung by the messenger of God.
When the examination is over,the
answer book of life is snatched away
And life comes to an end.
Do not buff,do not cheat
And do not write any useless stuff.
As your work is to be examined by the Great Examiner.
Be sufficient succint and clear,
It may get you good marks
Your performance may be estimable,
You may win the favour of the Great Examiner
You may pass and go to heaven to return earth no more.
Tuesday, 9 October 2012
गीदड़ और गौतम ब्रह्मण की कथा
एक बार एक गौतम नामक ब्राहमण था जिसने ऊँचे कुल और गौत्र में जन्म लिया था तथा वह वेदपाठी एवं श्रोत्रिय भी था!किन्तु वह अधिक धनि नहीं था!एक बार वह अपने घर से किसी कार्यवश सड़क से पैदल कहीं जा रहा था अकस्मात,मार्ग में उसके पास से एक धनि वैश्य अपने कीमती रथ पर सवार हो कर निकला!गौतम सड़क के मध्य में उसके रथ से आगे था!वैश्य ने अपने वाहन को रोककर ब्रह्मण को सड़क के सहारे होने का समय ही नहीं दिया!वह अपने धन,बल और रूप के मद से उन्मत्त हो रहा था उसने शीघ्रता से घोड़ो के द्वारा गौतम को चौट पहुंचाते हुए रथ आगे बढ़ा लिया!इस प्रकार वह बनिया ब्रह्मण की और अवहेलना पूर्वक देख कर हँसते और धुल उड़ाते हुवे अपने रास्ते चला गया!गौतम अपने तिरस्कार से बड़ा दुखी हुवा और सोचने लगा कि इस दुनिया में तो केवल धनि को ही जीने का अधिकार है निर्धन को नहीं!ऐसा जीवन जीने से तो मर जाना ही भला है!
अभी वह ऐसा सोच ही रहा था कि भगवन इन्द्र वहां एक गीदड़ के रूप में आये और उसके साथ साथ चलने लगे! गौतम पशुओं कि भाषा को जनता था!गीदड़ के द्वारा गौतम से उसकी निराशा का कारण पूछने पर उसने सारी घट्ना बता दी१तब गीदड़ ने कहा देखो,तुम मुझसे कहीं बहुत अधिक अच्छी अवस्था में हो! मेरे तो सारे शरीर में मक्खी,मच्छर और डांस काट काट कर मुझे पीड़ा देते रहते हैं!मैं उनसे अपने शरीर कि रक्षा भी नहीं कर सकता!मैं तो केवल दो हाथों के लिए ही भटकता हूँ!तुम्हारे पास तो दो हाथ हैं!मैं सर्दी गर्मी से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता किन्तु तुम्हे सब सुविधाएँ प्राप्त हैं!रोने पर मेरे आंसू तो सबको दीखते हैं किन्तु यदि मैं खुश होऊं तो मेरा हँसता चेहरा किसी को नहीं दीख सकता!और साथ ही जंगली जीव होने के कारण मुझे शेर चीतों के द्वारा खाए जाने का भी भय अलग लगा रहता है तब भी मैं तुम्हारी तरह आत्महत्या करने के विषय में तो कभी नहीं सोचता!
गौतम ने उसकी सांत्वना पूर्ण बाते सुनकर स्वयं को कुछ संभाला और उससे पूछा कि हे जीव,तुम कौन हो जो इस प्रकार विद्वानों कि तरह वार्तालाप करते हो! अपना परिचय दो!गीदड़ ने कहा मैं पिछले जन्म में एक ऊँचे कुल का धनि ब्राह्मण था!मैं अपने धन और ज्ञान के अहंकार में चूर हो कर अल्पज्ञानी हो कर भी अपने से अधिक विद्वान ब्राह्मणों से द्वेष रखता था!मैं उन्हें भरी सभाओं में नीचा दिखने का प्रयास और सदैव ही अपमानित करता था जिसके पाप वश मैं नीच योनी प्राप्त हुआ!तदन्तर पशचाताप हो जाने के परिणाम स्वरुप मुझे पिछले जन्म कि स्मृति अभी भी बनी हुई है!मैं अब भी यह चाहता हूँ कि मैं समय पर अपनी निर्धारित मृत्यु को पा कर क्रम से ब्रह्मा जी के रचे हुवे विधान के अनुसार विभिन्न योनियों में भ्रमण करता हुआ फिर से इस उच्च मनुष्य यों में जन्म लूँगा!सत्कर्म,भजन संकीर्तन और संत सेवा से इस दुस्तर संसार सागर से तर जाऊँगा!कभी भी अपने से ऊँचे लोगों से तुलना करके स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए अपने से नीचे प्राणियों को देखकर धैर्य धारण करना चाहिए!गीदड़ कि सब बातें सुनकर गौतम ने अपने मन में आई हुई ग्लानी को दूर किया और फिर से स्वस्थ चित्त हो कर सत्कार्यों में लग गया!
अभी वह ऐसा सोच ही रहा था कि भगवन इन्द्र वहां एक गीदड़ के रूप में आये और उसके साथ साथ चलने लगे! गौतम पशुओं कि भाषा को जनता था!गीदड़ के द्वारा गौतम से उसकी निराशा का कारण पूछने पर उसने सारी घट्ना बता दी१तब गीदड़ ने कहा देखो,तुम मुझसे कहीं बहुत अधिक अच्छी अवस्था में हो! मेरे तो सारे शरीर में मक्खी,मच्छर और डांस काट काट कर मुझे पीड़ा देते रहते हैं!मैं उनसे अपने शरीर कि रक्षा भी नहीं कर सकता!मैं तो केवल दो हाथों के लिए ही भटकता हूँ!तुम्हारे पास तो दो हाथ हैं!मैं सर्दी गर्मी से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता किन्तु तुम्हे सब सुविधाएँ प्राप्त हैं!रोने पर मेरे आंसू तो सबको दीखते हैं किन्तु यदि मैं खुश होऊं तो मेरा हँसता चेहरा किसी को नहीं दीख सकता!और साथ ही जंगली जीव होने के कारण मुझे शेर चीतों के द्वारा खाए जाने का भी भय अलग लगा रहता है तब भी मैं तुम्हारी तरह आत्महत्या करने के विषय में तो कभी नहीं सोचता!
गौतम ने उसकी सांत्वना पूर्ण बाते सुनकर स्वयं को कुछ संभाला और उससे पूछा कि हे जीव,तुम कौन हो जो इस प्रकार विद्वानों कि तरह वार्तालाप करते हो! अपना परिचय दो!गीदड़ ने कहा मैं पिछले जन्म में एक ऊँचे कुल का धनि ब्राह्मण था!मैं अपने धन और ज्ञान के अहंकार में चूर हो कर अल्पज्ञानी हो कर भी अपने से अधिक विद्वान ब्राह्मणों से द्वेष रखता था!मैं उन्हें भरी सभाओं में नीचा दिखने का प्रयास और सदैव ही अपमानित करता था जिसके पाप वश मैं नीच योनी प्राप्त हुआ!तदन्तर पशचाताप हो जाने के परिणाम स्वरुप मुझे पिछले जन्म कि स्मृति अभी भी बनी हुई है!मैं अब भी यह चाहता हूँ कि मैं समय पर अपनी निर्धारित मृत्यु को पा कर क्रम से ब्रह्मा जी के रचे हुवे विधान के अनुसार विभिन्न योनियों में भ्रमण करता हुआ फिर से इस उच्च मनुष्य यों में जन्म लूँगा!सत्कर्म,भजन संकीर्तन और संत सेवा से इस दुस्तर संसार सागर से तर जाऊँगा!कभी भी अपने से ऊँचे लोगों से तुलना करके स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए अपने से नीचे प्राणियों को देखकर धैर्य धारण करना चाहिए!गीदड़ कि सब बातें सुनकर गौतम ने अपने मन में आई हुई ग्लानी को दूर किया और फिर से स्वस्थ चित्त हो कर सत्कार्यों में लग गया!
values of brahmcharya in our life
This is a very important book and should be read by every one,may ne of whatever age from 13yrs to 100yrs . This book by swami shivanand ji is worth reading by every one.brahmcharya is not meant just for sadhus and sanyasis.this should be practiced by every one.can be downloaded here from this link.free download
THE VALUE OF SMILE
It costs nothing,but creates much.
It enriches those who receive,without impoverishing those who give.
It happens in a flash and the memory of it sometimes lasts forever.
None are so richthey can get along with it and none so poor but are richer for its benefits.
It creates happiness in the home,fosters goodwill in business,and is the countersign of friends.
It is rest to weary,daylight to the discouraged,sunshine to sad,and Nature's best antidote for trouble.
Yet it cannot be bought,begged,borrowed or stolen,for it is somethingthat is no earthly good to anybody till it is given away.
It enriches those who receive,without impoverishing those who give.
It happens in a flash and the memory of it sometimes lasts forever.
None are so richthey can get along with it and none so poor but are richer for its benefits.
It creates happiness in the home,fosters goodwill in business,and is the countersign of friends.
It is rest to weary,daylight to the discouraged,sunshine to sad,and Nature's best antidote for trouble.
Yet it cannot be bought,begged,borrowed or stolen,for it is somethingthat is no earthly good to anybody till it is given away.
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